राजनीति
-राजीव पी. सिंह
लखनऊ. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कार्रवाई के दावे किये जाते हैं, जिसके चलते अब सरकार के ही बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी द्वारा अपने भाई का गरीब कोटे से असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति कराने के लग रहे आरोपों से हडकंप मच गया है. इस वजह से जहां एक ओर अब इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पर योगी सरकार की नीति और नियत पर सवाल उठाये जा रहे हैं, तो वहीं अब समाजवादी पार्टी के साथ ही साथ कांग्रेस भी बेसिक शिक्षा मंत्री पर लगे इन आरोपों को लेकर योगी सरकार पर जमकर निशाना साधते नजर आ रही है.
न्यूज़ 18 से बात करते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि यूं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर मंच और सदन में भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कार्रवाई का दावा करते हैं, लेकिन अब तो योगी सरकार के ही बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने खुद आपदा में अवसर तलाशते हुए अपने भाई अरुण द्विवेदी की ईडब्ल्यूएस यानी की गरीबी कोटे से सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु के मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति कराकर एक बड़ा भ्रष्टाचार किया है. ऐसा करके बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने न सिर्फ गरीबों के हक पर डाका डाला है बल्कि उन तमाम अभ्यर्थियों के हक को भी मारा है जिन्होंने इस पद के लिये वर्षों से मेहनत की थी. ऐसे में अब देखना ये होगा कि क्या मुख्यमंत्री अपने बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी के भाई अरुण द्विवेदी की गरीबी का प्रमाण पत्र बनाने वाले और उनकी नियुक्ति करने वालों के खिलाफ भी क्या अपनी भ्रष्टाचार जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कार्रवाई करेंगे या फिर ऐसा करने की सिर्फ बयानबाजी ही करेंगे?
बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने दी सफाई
हालांकि विपक्ष द्वारा लगातार इस मुद्दे को लेकर योगी सरकार पर निशाना साधने के चलते बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने भी इस मामले पर अपनी सफाई दी है. उन्होंने कहा है कि एक अभ्यर्थी ने आवेदन किया और विश्वविद्यालय ने अपनी निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए साक्षात्कार के माध्यम से उसका चयन किया है. इस मामले में मेरा कोई दखल नहीं है, न ही कुछ कहना है. अगर किसी को लगता है कि मैं मंत्री हूं, विधायक हूं, तो मेरा भाई कैसे EWS (आर्थिक रूप से कमजोर) हो गया? तो क्या आपका भाई अगर 3-4 करोड़ का पैकेज पाता है, तो क्या उसका भाई उस आय का अधिकारी माना जाता है? भाई की अलग पहचान है. उसने अपने पहचान के आधार पर आवेदन किया है.प्रशासन ने प्रमाण पत्र दिया है और विश्वविद्यालय ने अपनी निर्धारित प्रक्रिया के तहत चयन किया है. जिसे आपत्ति है, वो इस मामले की जांच करा सकता है.
भोपाल, 20 मई| मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार के आवास पर एक महिला द्वारा आत्महत्या किए जाने पर पुलिस द्वारा मामला दर्ज किए जाने और गिरफ्तारी की लटकी तलवार के बीच कांग्रेस लामबंद हो चुकी है। सूत्रों की मानें तो गुरुवार को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ के आवास पर 25 से ज्यादा विधायक जमा हुए और लंबी बैठक चली। इस दौरान विधायक सिंघार के मामले पर चर्चा हुई और तय हुआ कि पुलिस और सरकार की ज्यादती बर्दाश्त नहीं की जाएगी। साथ ही पुलिस आगे किसी तरह की कार्रवाई करती है तो कांग्रेस एकजुट होकर मुकाबला करेगी।
ज्ञात हो कि इससे पहले पांच विधायकों का दल पुलिस महानिदेशक से मुलाकात कर निष्पक्ष जांच की मांग कर चुका है। साथ ही पुलिस के मामला दर्ज करने पर सवाल उठा चुका है। कांग्रेस के विधायकों का कहना है कि जिस महिला ने विधायक के आवास पर खुदकुशी की है, उसके बेटे और मां ने सिंघार पर किसी तरह का आरोप नहीं लगाया फिर भी पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर लिया।
हरियाणा के अंबाला की रहने वाली 39 वर्षीय सोनिया भारद्वाज की कांग्रेस विधायक सिंघार से मित्रता थी और उसका सिंघार के घर पर आना जाना था। वह पिछले कई दिनों से उनके आवास पर थी और रविवार को उसने दुपट्टे से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। महिला पहले से शादीशुदा थी और उसका एक बेटा भी है। पुलिस को मौके पर सुसाइड नोट भी मिला था, जिसमें किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। हां उस पत्र में सिंघार का कई बार नाम है और लिखा है कि 'अब सहन नहीं होता, वे गुस्से में बहुत तेज हैं।'
पुलिस ने मोबाइल चैट और पूछताछ के आधार पर सिंघार के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर लिया है। वहीं सोनिया के बेटे ने सिंघार पर किसी तरह का आरेाप नहीं लगाया है। (आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 18 मई| केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन ने माकपा और सरकार में 'अंतिम शब्द' होने की अपनी शैली के अनुरूप, मंगलवार को अपने फैसले से सबको चौंका दिया। उन्होंने प्रशंसित स्वास्थ्य मंत्री के.के. शैलजा को अपने नए मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी, जबकि अपने दामाद पी.ए. मोहम्मद रियाज को मंत्री पद दिया। विजयन के 21 सदस्यीय कैबिनेट में माकपा के 12, भाकपा के चार, केरल कांग्रेस (एम), राकांपा और जनता दल (एस) के एक-एक और दो अन्य सहयोगी दलों में से एक-एक शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक के पास एक विधायक है।
लोकतांत्रिक जनता दल, एकमात्र सहयोगी दल है, जिसे कैबिनेट का पद नहीं मिला।
मंत्रिमंडल की घोषणा पार्टी में और इसके बाहर कई लोगों के लिए एक झटके के रूप में आई है। मंत्री पद न मिलने पर शैलजा ने कहा कि वह एक अनुशासित पार्टी कार्यकर्ता हैं और पार्टी के फैसले का पालन करेंगी।
अन्य सभी नाम अपेक्षित तर्ज पर थे और केवल एक ही मानदंड था और वह था विजयन के प्रति अडिग निष्ठा। नए मंत्रिमंडल में शामिल हैं पूर्व राज्यसभा सदस्य पी. राजीव और के.एन. बालगोपाल, महिलाओं में प्रोफेसर आर. बिंदु जो माकपा सचिव ए. विजयराघवन की पत्नी हैं। इनके अलावा पत्रकार व दूसरी बार विधायक बनीं वीना जॉर्ज शामिल हैं।
अन्य मंत्रियों में शामिल हैं विजयन के सबसे करीबी सहयोगी एम. गोविंदन जो कन्नूर से हैं। इसके अलावा, पूर्व राज्यमंत्री साजी चेरियन और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के. राधाकृष्णन भी मंत्री बनाए गए हैं जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित त्रिशूर निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए हैं।
वी. शिवनकुट्टी को भी मंत्री पद दिया जाना तय था, क्योंकि उन्होंने राज्य की राजधानी की नेमोम सीट पर भाजपा के मजबूत उम्मीदवार कुम्मनम राजशेखरन को हराया है।
मंत्रिमंडल में वी. अब्दुरहीमान को भी शामिल किया गया है जो मुस्लिम बहुल मलप्पुरम जिले से हैं, हालांकि उनकी पार्टी नेशनल सेक्युलर कांफ्रें स गठबंधन में शामिल नहीं है, बल्कि उसे माकपा का समर्थन प्राप्त है।
वी.एन. वसावन माकपा के एक अन्य नेता हैं, जो विजयन के वफादार माने जाते हैं, उन्हें भी मंत्री पद दिया गया है।
दो बार के लोकसभा सदस्य एम.बी. राजेश जो पलक्कड़ से 2019 का चुनाव हार गए थे, लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव जीते हैं, उन्हें सदन के अध्यक्ष पद के लिए चुना गया है।
इस बीच खबरें सामने आई हैं कि माकपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने शैलजा को नए मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने पर नाराजगी जताई है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 17 मई| भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली इकाई ने केजरीवाल सरकार पर जनता को मुफ्त राशन की योजना से वंचित करने का आरोप लगाया है। दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष आदेश कुमार गुप्ता ने पूछा है कि दिल्ली में केजरीवाल ने सरकार ने अब तक 'वन नेशन वन राशन कार्ड' योजना क्यों नहीं लागू की?
प्रदेश अध्यक्ष आदेश कुमार गुप्ता ने कहा कि मोदी सरकार की ओर से मिले राशन में दिल्ली की दुकानों में हो रही भारी मिलावट को संरक्षण कौन दे रहा है? पिछले 6 सालों में केजरीवाल सरकार ने एक भी नया राशन कार्ड क्यों नहीं बनवाया? अगर मोदी सरकार दिल्ली के 72 लाख कार्डधारियों को 2 महीने के लिए मुफ्त राशन दे रही है तो दिल्ली सरकार क्या कर रही है? क्या अगले 2 महीने के लिए केजरीवाल सरकार 72 लाख कार्डधारियों के लिए मुफ्त राशन उपलब्ध करायेगी?
आदेश कुमार गुप्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद दिल्ली सरकार ने प्रवासी मजदूरों को राशन और गरीब व दिहाड़ी मजदूरों को सामुदायिक राशन के माध्यम से पका हुआ भोजन क्यों नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद दिल्ली सरकार ने प्रवासी मजदूरों को राशन और गरीब व दिहाड़ी मजदूरों को सामुदायिक राशन के माध्यम से पका हुआ भोजन क्यों नहीं दिया?
कोलकाता, 12 मई| पश्चिम बंगाल में भाजपा के विधायकों की संख्या बुधवार को 77 से घटकर अब 75 हो गई। दो विधायकों ने पार्टी के निर्देश पर विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। ये दोनों सांसद हैं। ये विधानसभा चुनाव जीते और विधायक बने, लेकिन इनका सांसद बने रहना पार्टी के लिए ज्यादा फायदेमंद रहेगा। कूच बिहार के सांसद निशीथ प्रमाणिक जिले के दिनहाटा से विधायक चुने गए थे। इसी तरह
राणाघाट के भाजपा सांसद जगन्नाथ सरकार नदिया जिले के शांतिपुर से जीतकर विधायक बने, लेकिन दोनों ने बुधवार को विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
प्रमाणिक ने कहा, "हमने पार्टी के फैसले का पालन किया है। पार्टी ने फैसला किया है कि हमें अपनी विधानसभा सीटों से इस्तीफा दे देना चाहिए।"
कूच बिहार के सांसद ने राज्य में चुनाव के बाद की हिंसा के बाबत कहा, "कूच बिहार के लोगों ने तृणमूल कांग्रेस को खारिज कर दिया है, इसलिए वे (तृणमूल) हिंसा का सहारा ले रहे हैं। अब उपचुनाव होगा। भाजपा फिर जीतेगी।"
भाजपा के एक सूत्र ने कहा, "आधिकारिक घोषणा समय की बात है। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व उत्सुक है कि दोनों सांसद बने रहें।"
भाजपा ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में चार लोकसभा सांसदों को मैदान में उतारा था। प्रमाणिक और सरकार के अलावा, पार्टी ने लॉकेट चटर्जी और बाबुल सुप्रियो को मैदान में उतारा था, जबकि राज्यसभा सदस्य स्वपन दासगुप्ता पांचवें सांसद थे। दासगुप्ता ने तारकेश्वर सीट से अपना नामांकन दाखिल करने से पहले इस्तीफा दे दिया था, मगर वह विधानसभा चुनाव हार गए। लॉकेट चटर्जी और बाबुल सुप्रियो भी हार गए।
तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, "बीजेपी ने बंगाल चुनाव में चार लोकसभा सांसद और एक राज्यसभा सांसद को मैदान में उतारा था। उनमें से तीन चुनाव हार गए और दो जीते। इन दो विजयी विधायकों ने आज इस्तीफा भी दे दिया। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी ने चुनाव में शून्य हासिल करने का विश्व रिकॉर्ड बनाया।" (आईएएनएस)
मुंबई, 13 मई | महाराष्ट्र कांग्रेस ने बुधवार को मांग की है कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार को रमजान के पवित्र पवित्र महीने के अंत में यरुशलम में अल अक्सा मस्जिद पर इजरायल के हमलों की कड़ी निंदा करनी चाहिए। बड़ी संख्या में मुसलमानों की मौत हुई है और कई घायल हुए। पूर्व मंत्री और कार्यकारी अध्यक्ष नसीम खान के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की और इस आशय का एक ज्ञापन सौंपा।
खान ने कहा, "भारत सरकार को इजरायली सशस्त्र बलों द्वारा किए गए इन अत्याचारों की निंदा करनी चाहिए और एक स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि भारत फिलीस्तीनियों के पीछे मजबूती से खड़ा है।"
प्रतिनिधिमंडल में पूर्व सांसद उबैदुल्ला के. आजमी, पूर्व विधायक यूसुफ अबरहानी, रजा अकादमी के संयोजक सईद नूरी और अन्य लोगों ने राज्यपाल को बताया कि यरुशलम में जब लोग नमाज अदा कर रहे थे तो निर्दोष बच्चों और महिलाओं पर इजराइली सैनिकों द्वारा गोलों से अंधाधुंध हमले किए गए। अल अक्सा मस्जिद - मक्का और मदीना के बाद इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है, वहां हमले किए गए।
प्रतिनिधिमंडल ने इन हमलों की तुलना
हिटलर के यहूदियों के नरसंहार के साथ
करते हुए कहा कि इससे भारतीय और वैश्विक मुस्लिम भाईचारे में भारी गुस्सा है।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 11 मई| अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में पार्टी के नुकसान के कारणों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है। इस समिति की अध्यक्षता महाराष्ट्र के लोक निर्माण विभाग के मंत्री अशोक चव्हाण करेंगे, जबकि पूर्व मंत्री सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी और विंसेंट पाला इसके सदस्य हैं। दूसरे सदस्य तमिलनाडु के सांसद जोति मणि हैं। समिति दो सप्ताह में अपनी रिपोर्ट देगी।
तिवारी हैं जो उस समूह का हिस्सा थे जिसने संगठनात्मक चुनावों के लिए सोनिया गांधी को पत्र लिखा था।
इससे पहले, सोनिया गांधी ने सीडब्ल्यूसी की बैठक में कहा था, "मैं हर पहलू को देखने के लिए एक छोटा पैनल स्थापित करने का इरादा रखती हूं, जो इस तरह के उलटफेर का कारण बने और बहुत जल्दी रिपोर्ट करें। हमें स्पष्ट रूप से समझने की आवश्यकता है कि हम क्यों विफल रहे।"
उन्होंने कहा, सीडब्ल्यूसी की बैठक हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के परिणामों पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी। उन्होंने कहा कि पार्टी को लगे गंभीर झटकों से सबक लेने की जरूरत है।
उन्होंने आगे कहा, "ये असुविधाजनक सबक देंगे, लेकिन अगर हम वास्तविकता का सामना नहीं करते हैं, अगर हम तथ्यों को नहीं देखते हैं, तो हम सही सबक नहीं ले पाएंगे।"
बैठक के दौरान, सभी राज्य प्रभारियों ने पार्टी के पश्चिम बंगाल प्रभारी जितिन प्रसाद के साथ कहा कि पीरजादा अब्बास सिद्दीकी द्वारा गठित भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा (आईएसएफ) के साथ गठबंधन के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि सिद्दीकी ने राज्य में कांग्रेस की संभावनाओं को चौपट कर दिया।
सूत्रों ने कहा कि केरल के पार्टी प्रभारी तारिक अनवर ने सीडब्ल्यूसी को बताया कि कांग्रेस अति आत्मविश्वास में आ गई, जिस कारण राज्य में उसकी हार हुई और जब तक उसे इस बात का अहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
पार्टी के असम प्रभारी जितेंद्र सिंह ने जानकारी दी कि तरुण गोगोई के बाद कांग्रेस का राज्य में कोई बड़ा चेहरा नहीं था, जबकि रायजोर दोल जैसे छोटे दलों ने भी पार्टी के वोट में हिस्सेदारी की। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 12 मई | कांग्रेस ने मंगलवार को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र दिए जाने के तुरंत बाद भाजपा पर 'अहंकारी' होने का आरोप लगाया और कहा कि मुद्दे उठाकर सरकार को सुझाव देना विपक्षी दलों का कर्तव्य है। सोनिया गांधी को लिखे पत्र में नड्डा ने उनकी पार्टी पर हमला करते हुए कहा कि महामारी के खिलाफ लड़ाई में, इसके पूर्व प्रमुख राहुल गांधी सहित कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के आचरण को 'नकल और क्षुद्रता' के लिए याद किया जाएगा।
कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि देश में स्थिति दयनीय है। सोमवार को बिहार के बक्सर जिले में गंगा नदी में लोगों के शव तैरते हुए देखे गए थे।
माकन ने कहा, सरकार इलाज, पर्याप्त टीके और ऑक्सीजन मुहैया कराने में तो विफल रही ही, यहां तक कि सम्मानजनक अंतिम संस्कार करने में भी असमर्थ है। उन्होंने सरकार से अहंकार छोड़ने और लोगों की मदद करने के लिए कहा।
पार्टी ने कहा कि भाजपा को 'राजधर्म' का पालन करना चाहिए। कांग्रेस केवल अपना कर्तव्य निभा रही है और सरकार को महामारी से निपटने में अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए और सभी के लिए मुफ्त टीकाकरण शुरू करना चाहिए। कांग्रेस ने कोविड की स्थिति पर एक सर्वदलीय बैठक की अपनी मांग भी दोहराई।
नड्डा पर हमला करते हुए, कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने एक ट्वीट में कहा, कांग्रेस को आरोपपत्र लिखने के बजाय, नड्डा को चाहिए कि देश को कोविड-19 की दूसरी लहर के नरक की आग में धकेलने के लिए भाजपा की ओर से माफीनामा लिखें।(आईएएनएस)
चेन्नई, 10 मई| तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी राज्य के अगले विपक्ष के नेता होंगे। सोमवार को यहां पार्टी मुख्यालय में आयोजित विधायकों और वरिष्ठ नेताओं की तीन घंटे की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री को एआईएडीएमके के विधायक दल का नेता चुना गया। वह स्वाभाविक रूप से विधानसभा में विपक्ष के नेता बन जाएंगे।
पार्टी नेताओं ने पार्टी विधायकों और पदाधिकारियों की बैठक के बाद विधानसभा सचिव के.श्रीनिवास को एआईएडीएमके विधायक दल के नेता के रूप में पलानीस्वामी के नाम का प्रस्ताव पत्र सौंपा।
यह पहली बार है, जब एआईएडीएमके विधायक दल के नेता की घोषणा पार्टी के भीतर बहुत विरोध के बाद की गई।
पार्टी को विधानसभा में अपने मुख्य सचेतक और उप नेता के नाम की घोषणा करना बाकी है।
पूर्व उपमुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पी. धनपाल के नाम का प्रस्ताव पार्टी विधायक दल के नेता के रूप में रखा था, जिसका पलानीस्वामी के समर्थक विधायकों ने विरोध किया। बाद में पलानीस्वामी के नाम पर सहमति बनी।
नवनिर्वाचित विधायक 11 मई, मंगलवार को शपथ लेंगे और विधानसभाा अध्यक्ष 12 मई को चुने जाएंगे।
अध्यक्ष को मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता द्वारा चुना जाना है और विपक्ष के नेता का चयन 12 मई से पहले होना है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 10 मई | केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब केंद्र लोगों के जीवन की सुरक्षा के लिए हर संभव उपाय अपना रहा है, तब कोविड-19 संकट पर राजनीति की जा रही है। शाह ने ट्वीट किया, "केंद्र ने नागरिकों के जीवन की सुरक्षा के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया है। मोदी सरकार कोविड को नियंत्रित करने के लिए काफी प्रयास कर रही है, मगर विपक्षी नेता हमेशा की तरह राजनीति करना जारी रखे हुए हैं।"
गृहमंत्री ने एक ट्वीट में एक दैनिक में प्रकाशित केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के 'डिसइनफॉर्मेशन क्राइसिस' शीर्षक आलेख का उल्लेख करते हुए टिप्पणी की : "प्रकाश जावड़ेकर जी का लेख पढ़ें।"
आलेख में, जावड़ेकर ने लिखा है कि कैसे जनवरी की शुरुआत में देशभर में कोविड की स्थिति में काफी सुधार हुआ था और रोजाना आने वाले नए मामलों की संख्या लगातार घट रही थी।
हालांकि, उन्होंने कहा, केरल में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े और रोजाना आने वाले नए मामलों में लगभग एक तिहाई मामलों की रिपोर्ट वहीं से आ रही थी।
6 जनवरी को, मंत्री ने आलेख में उल्लेख किया, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने केरल सरकार को लिखा था और तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया था।
"अगले दिन, एक उच्च-स्तरीय केंद्रीय टीम राज्य में भेजी गई थी। यह पिछले साल के कई उदाहरणों में से एक था - विशेष रूप से पिछले कुछ महीनों में - जो केंद्र सरकार के कठोर निगरानी प्रयासों को उजागर करता है और भारत भर में कोविड के मामलों में तेजी से वृद्धि को रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई की गई थी।"
जावड़ेकर ने लिखा है, "मुझे यह याद है कि इस मिथक का प्रसार किया जा रहा था कि केंद्र सरकार ने पहली लहर के बाद गेंद कोविड प्रबंधन के पाले में डाल दिया और पिछले कुछ महीनों से इसे पूरी तरह से राज्यों पर छोड़ दिया है।"
मंत्री ने कहा कि 'सच्चाई से आगे कुछ भी नहीं है', सार्वजनिक स्वास्थ्य राज्य का विषय होने के बावजूद, केंद्र सरकार कोविड प्रबंधन में सक्रिय रही है, क्योंकि एक महामारी को राष्ट्रीय स्तर के समन्वय और पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होती है।
उन्होंने लिखा, "सामने से नेतृत्व करना और राज्यों को काफी सहयोग और मार्गदर्शन प्रदान करना जारी रखा गया। फरवरी 2020 से, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय मामले के रुझानों की निगरानी कर रहा है, राज्यों की तैयारियों का मूल्यांकन कर रहा है, तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान कर रहा है और राज्य एवं जिला स्तर पर बनाई गईं प्रतिक्रिया रणनीतियों के अनुसार देखरेख कर रहा है।" (आईएएनएस)
-सैबाल गुप्ता
कोलकाता, 10 मई| पश्चिम बंगाल विधानसभा में भाजपा हालांकि 2016 की तुलना में 2021 में तीन से बढ़कर 77 तक पहुंच गई है। 74 सीटों की पर्याप्त वृद्धि हुई है, लेकिन बहुमत के आंकड़े 121 से नीचे रही।
पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा की सफलता नरेंद्र मोदी-अमित शाह के बैनर तले हिंदू वोटों के अत्यधिक ध्रुवीकरण का नतीजा थी, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनावों में, भगवा खेमा उस समय हिंदू समर्थन के स्तर को बनाए रखने में नाकाम रहा। पिछले आम चुनाव में अपनी अपेक्षाओं और अपने प्रदर्शन से बहुत नीचे।
राज्य में किए गए कुछ प्रमुख सर्वेक्षणों के अनुसार, पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा का हिंदू वोटों का हिस्सा 2016 में 12 प्रतिशत से बढ़कर 57 प्रतिशत या कुल मिलाकर लगभग तीन-पांच प्रतिशत था, लेकिन आश्चर्यजनक रूप जब भाजपा हिंदू समर्थन हासिल करने के लिए जमकर प्रचार कर रही थी, तो यह घटकर 50 प्रतिशत रह गया - 7 प्रतिशत का पर्याप्त क्षरण, जिसने इसे अपने इच्छित लक्ष्य तक पहुंचने से रोक दिया।
दिलचस्प बात यह है कि दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस, जिसने 2016 के विधानसभा चुनावों में 43 प्रतिशत हिंदू वोट हासिल किए थे, लगभग 11 प्रतिशत का नुकसान हुआ और 2019 के लोकसभा चुनावों में 32 प्रतिशत पर आ गई, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से यह 39 प्रतिशत हिंदू वोटों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहा, फिर भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।
इस 7 प्रतिशत का विधानसभा चुनाव में गणित के पीछे महत्वपूर्ण योगदान था। हिंदू वोट के समर्थन के अलावा, तृणमूल लगभग 75 प्रतिशत मुस्लिमों के समर्थन को हासिल करने में सफल रही और इसने उन्हें चुनाव में जीत दिलाई।
भाजपा खेमा हिंदू वोट के एक हिस्से की वफादारी के पीछे संभावित कारणों का पता लगाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन एक बात तय है कि एनआरसी और सीएए मुद्दे राज्य की निम्नवर्गीय हिंदू जातियों के बीच अच्छे से नहीं चल पाए।
हालांकि भाजपा सवर्णों की निष्ठा को बनाए रखने में सफल रही, लेकिन मतुआ, महिषी और आदिवासियों जैसी निचली जातियों ने भगवा खेमे से दूरी बना ली। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 मई| पश्चिम बंगाल की 294 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा तीन सीटों से बढ़कर 77 तक पहुंच गई, इसके बावजूद, पार्टी के कई नेताओं को लगता है कि केंद्रीय नेतृत्व जमीन पर जनता का मूड भांप नहीं पाया और स्थानीय नेतृत्व ने भी अनदेखी की, यही वजह है कि पार्टी सत्ता पाने से चूक गई। पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने में पार्टी की विफलता के कारणों को सूचीबद्ध करते हुए, जिसे केरल के साथ भगवा पार्टी द्वारा अंतिम सीमा माना गया था, पश्चिम बंगाल के नेताओं ने आईएएनएस को बताया कि निर्णय लेने में राज्य नेतृत्व की बहुत कम भागीदारी थी, वहां देश के अन्य हिस्सों से, खासकर उत्तर भारत से केंद्रीय नेताओं की बहुत अधिक तैनाती और एक विश्वसनीय और प्रभावी बंगाली नेतृत्व पेश करने में विफलता।
पश्चिम बंगाल भाजपा इकाई में एक वर्ग को लगता है कि अगर केंद्रीय नेतृत्व ने स्थानीय कैडर को सुना होता तो परिणाम बेहतर हो सकता था। भाजपा के एक नेता ने दावा किया, "स्थानीय नेता लोगों के साथ अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं और उनके मुद्दों के बारे में जानते हैं, लेकिन उनकी अनदेखी करके केंद्रीय नेतृत्व पूरी तरह से डिस्कनेक्ट हो गया।"
पश्चिम बंगाल के पूर्व भाजपा प्रमुख और त्रिपुरा और मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय ने टिकट वितरण और राज्य इकाई के मामलों के लिए केंद्रीय नेतृत्व की ओर से राज्य इकाई में नियुक्तियों की भूमिका की खुलेआम आलोचना की। रॉय ने राज्य प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय, सह प्रभारी अरविंद मेनन, शिव प्रकाश और राज्य इकाई के प्रमुख दिलीप घोष को हार के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए ट्वीट किया था, इन लोगों ने वैचारिक रूप से संचालित भाजपा कार्यकर्ताओं और धर्मनिरपेक्ष स्वयंसेवकों का हर संभव अपमान किया है जो 1980 के दशक से ही पार्टी के लिए लगातार काम कर रहे थे।
विधानसभा चुनावों में हारने वाले कुछ लोगों सहित पश्चिम बंगाल के अन्य भाजपा नेताओं ने कहा, पार्टी के चुनाव मामलों का प्रबंधन करने के लिए सौंपे गए सभी केंद्रीय नेता स्थानीय कैडर के फीडबैक की अनदेखी करते हुए अपने होमवर्क करने में विफल रहे और उन्होंने तानाशाह के रूप में काम किया।
पश्चिम बंगाल भाजपा के एक नेता ने दावा किया कि पार्टी के रणनीतिकारों ने एक विश्वसनीय स्थानीय चेहरा पेश करने में विफल रहे और इसे बंगाली (ममता बनर्जी) बनाम गैर बंगाली (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह) बना दिया। टीएमसी ने इसका इस्तेमाल किया और लगातार हम पर हमला किया और प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को पर्यटक बुलाया। मोदी, शाह और अन्य लोगों सहित अधिकांश स्टार प्रचारकों ने हिंदी में वोटरों को संबोधित किया। इससे ममता बनर्जी के कथन को बल मिला कि भाजपा एक बाहरी पार्टी है, जिसमें बंगाली पहचान और संस्कृति का कोई सम्मान नहीं है।
स्थानीय भाजपा इकाई का यह भी मानना है कि बतौर मुख्यमंत्री एक स्थानीय विश्वसनीय चेहरा पेश नहीं किए जाने से पार्टी राज्य के बुद्धिजीवियों और शहरी इलाकों में बंगाली भद्रलोक को आकर्षित करने में विफल रही। (आईएएनएस)
भोपाल, 7 मई| मध्य प्रदेश के दमोह विधानसभा में हुए उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार राहुल लोधी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। इस हार की बड़ी वजह जनता में लोधी और स्थानीय भाजपा के नेताओं के खिलाफ बड़ा असंतोष माना जा रहा है। साथ ही भितरघात ने भी बड़ी भूमिका निभाई है।
राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद हुए 28 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में भाजपा ने 19 स्थानों पर जीत दर्ज की थी और कांग्रेस नौ स्थानों पर जीती थी। उसके बाद दमोह से कांग्रेस के तत्कालीन विधायक राहुल लोधी ने भी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया और भाजपा में शामिल हो गए, इसके चलते उपचुनाव हुआ। दलबदल करने के कारण स्थानीय लोग राहुल लोधी से खासे नाराज थे और यह बात चुनावी नतीजों में भी सामने नजर आई।
दमोह बुंदेलखंड का वह जिला है जहां से केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल सांसद हैं। साथ ही यहां से छह बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड पूर्व मंत्री जयंत मलैया के नाम पर है। इतना ही नहीं भाजपा का अपना वोट बैंक भी है उसके बावजूद भाजपा के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा है।
सूत्रों की माने तो पार्टी ने दमोह क्षेत्र से हार के कारणों की रिपोर्ट भी तलब की है, साथ ही समीक्षा भी शुरू कर दी है। प्रारंभिक तौर पर पार्टी के सामने जो बातें आई हैं उनमें भितरघात के साथ नेताओं का कमजोर होता जनाधार भी है, इसलिए संभावना इस बात की जताई जा रही है कि कई नेताओं पर जहां गाज गिर सकती है, वहीं कई ताकतवर नेताओं के कद भी छोटे किए जा सकते हैं।
सूत्रों का कहना है कि भाजपा में इस बात को लेकर खासी चिंता है कि सत्ता और संगठन ने चुनाव जीतने के लिए सारा जोर लगाया और जनमानस के मन को टटोलने की हर संभव कोशिश की। उसके बाद पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है।
इस हार के लिए दमोह जिले के तमाम कददावर नेताओं की निष्क्रियता, जातिवादी राजनीति और जनमानस में घटते उनके प्रभाव को माना जा रहा है। पार्टी भी दमोह के जरिए यह संदेश देने की कोशिश कर सकती है कि जो नेता भी जनता से दूरी बढ़ाएंगे और उनके खिलाफ असंतोष होगा ऐसों का कद कम किया जाएगा चाहे वह कितना भी ताकतवर और प्रभावशाली नेता क्यों न हो। (आईएएनएस)
साईबाल गुप्ता
कोलकाता, 6 मई| पश्चिम बंगाल में हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में चुनाव लड़ने वाले 292 उम्मीदवारों में से सात भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है।
अपमानजनक हार झेलने वाले भगवा पार्टी के सात उम्मीदवार भागावंगोला, लालगोला, रघुनाथगंज, कैनिंग ईस्ट, भांगर, हरिहरपारा और सुजापुर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदार थे।
निर्वाचन डिपॉजिट उम्मीदवार द्वारा अपना नामांकन जमा करते समय जमा की गई राशि होती है। चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार, राज्य विधानसभा चुनावों के लिए यह राशि 10,000 रुपये होती है। हालांकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए यह राशि 5,000 रुपये निर्धारित है।
मुर्शिदाबाद जिले के भागावंगोला विधानसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार महबूब आलम को भारी हार का सामना करना पड़ा, क्योंकि वह अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार से 137,088 मतों के अंतर से हार गए। तृणमूल के इदरीस अली को आलम के 16,707 मतों के मुकाबले 153,795 वोट मिले, जो कुल वोटों का महज 7.2 प्रतिशत है।
इसके अलावा मालदा जिले के सुजापुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार एस. के. जियाउद्दीन को तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार मोहम्मद अब्दुल गनी के खिलाफ भारी हार का सामना करना पड़ा। गनी को जियाउद्दीन के 14,789 वोटों के मुकाबले 152,445 वोट मिले, जो कि कुल वोटों का मात्र 7.1 प्रतिशत है।
वहीं दक्षिण 24 परगना जिले के कैनिंग ईस्ट से तृणमूल उम्मीदवार सोकाट मोल्ला ने भाजपा के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कालीपदा नस्कर को 87,059 मतों के अंतर से हराया। मोल्ला को जहां 121,562 वोट मिले, वहीं नस्कर को 34,503 वोटों से ही संतोष करना पड़ा और उन्हें कुल वोटों का महज 14.5 प्रतिशत ही मिल पाया।
इसी तरह मुर्शिदाबाद जिले के रघुनाथगंज विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी को कुल मतों के केवल 14.9 प्रतिशत मत ही हासिल हो सके। जहां बीजेपी के गोलम मुदस्सुर को 28,251 वोट मिले, वहीं तृणमूल के उम्मीदवार अक्रुज्जमन को 126,343 वोटों प्राप्त हुए।
दक्षिण 24 परगना जिले के मेटियाब्रुज विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल के उम्मीदवार अब्दुल कहलके मोल्ला ने भाजपा के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी रामजीत प्रसाद को 84,282 मतों के अंतर से हराया। मोल्ला को प्रसाद के 31,357 मतों के मुकाबले 102,660 वोट मिले, जो कुल वोटों का 16 प्रतिशत है।
इसी तरह, मुर्शिदाबाद जिले के लालगोला से भाजपा उम्मीदवार अपने तृणमूल प्रतिद्वंद्वी से 78,363 मतों के अंतर से हार गए और वह वोट शेयर का केवल 15.4 प्रतिशत ही पा सके।
दक्षिण 24 परगना जिले के भांगर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार सोमी हती तीसरे स्थान पर चली गईं और उन्हें आईएसएफ के जीते हुए उम्मीदवार नौशाद सिद्दीकी के 109,063 मतों के मुकाबले केवल 38,726 वोट मिले। (आईएएनएस)
-दिलनवाज़ पाशा
"पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी की जनता ने अगले पाँच साल के लिए अपना जनमत दे दिया है. हम इन चुनाव परिणामों को पूरी विनम्रता और ज़िम्मेदारी से स्वीकार करते हैं."
चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के चुनावी नतीजों में मिली बुरी हार के बाद कांग्रेस ने ये बयान जारी करके अपनी हार को एक बार फिर स्वीकार कर लिया है.
हाल के सालों में पार्टी को इस तरह का बयान कई बार जारी करना पड़ा है. बिहार में हार के बाद भी पार्टी ने नतीजों को 'विनम्रता से स्वीकार' कर लिया था.
इन विधानसभा चुनावों में सबसे अहम रहा पश्चिम बंगाल, जहाँ कांग्रेस गठबंधन का खाता तक नहीं खुल सका. कांग्रेस ने वामपंथी दलों के साथ गठबंधन किया था, जिसे महाजोट कहा जा रहा था.
बंगाल ने नहीं माना विकल्प
SANJAY DAS/BBC
माना जा रहा था कि मुशर्दिबाद और मालदा ज़िलों की सीटों पर परंपरागत रूप से कांग्रेस और कुछ दूसरे इलाक़ों में वामपंथियों को वोट मिल सकते हैं और उनका एक साथ आना उन्हें कुछ सीटें दिला सकता है, लेकिन परिणाम दिखा रहे हैं कि बंगाल की जनता ने इस महाजोट को विकल्प माना ही नहीं.
राजनीतिक विश्लेषक उर्मिलेश कहते हैं, "लेफ़्ट और कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में विशाल रैली की थी, लेकिन बावजूद इन्हें एक भी सीट नहीं मिली. लेफ़्ट और कांग्रेस दोनों ही ग़ायब हो गए. पश्चिम बंगाल के लिए कहा जा सकता है कि जो लड़ाई में थे वही नतीजों में हैं. यहाँ टीएमसी और बीजेपी के बीच आमने-सामने की लड़ाई थी. जो किसी भी कारण से बीजेपी के ख़िलाफ़ थे वो तृणमूल कांग्रेस के साथ हो गए."
कांग्रेस गठबंधन की बुरी हार को ही बीजेपी ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत की वजह बता रही है. बीजेपी के सोशल मीडिया प्रमुख अमित मालवीय ने एक टिप्पणी में कहा, "कांग्रेस और लेफ़्ट के सफ़ाए ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी को सत्ता में आने से रोक दिया है."
पिछले विधानसभा चुनावों में लेफ़्ट और कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में कुल मिलाकर 76 सीटें मिली थीं. इस बार शून्य मिला है. पार्टी की यहाँ चुनाव लड़ने में कितनी दिलचस्पी रही ये इससे ही पता चलता है कि राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल में सिर्फ़ दो विधानसभा क्षेत्रों में रैलियाँ की.
विश्लेषक मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के करिश्मा करने की उम्मीद भी नहीं थी. यहाँ चुनाव अभियान बेहद विभाजनकारी रहा और चुनाव दो दलों तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही रह गया.
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी को सिर्फ़ 3.02 प्रतिशत वोट ही मिल सके, जबकि पिछले चुनावों में पार्टी को यहाँ 12.25 प्रतिशत वोट मिले थे.
कांग्रेस पर नज़र रखने वालीं राजनीतिक विश्लेषक अपर्णा द्विवेदी कहती हैं, "कांग्रेस पश्चिम बंगाल में कुछ कर पाएगी, ऐसी उम्मीद किसी ने नहीं की थी. ख़ुद कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता मान चुके थे कि पार्टी यहाँ लड़ाई में नहीं है. पार्टी ने एक और ग़लती गठबंधन में चुनाव लड़कर की. कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन करके अपनी रही-सही ज़मीन भी गँवा रही है, ऐसा पहले भी देखा गया है."
असम में नहीं बनी बात
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कांग्रेस को सबसे ज़्यादा उम्मीदें असम और केरल से थीं. असम में प्रियंका गांधी ने धुआंधार चुनाव प्रचार किया और बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ़ से गठबंधन भी किया था.
2016 में असम में कांग्रेस को 26 सीटें मिली थीं, इस बार पार्टी को 29 सीटें मिली हैं, लेकिन पिछले चुनावों के मुक़ाबले पार्टी का वोट शेयर कम हुआ है. 2016 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 31 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि इस बार 30 प्रतिशत वोट ही मिले हैं.
बीजेपी गठबंधन ने असम में 75 सीटें जीतीं. यह राज्य में बीजेपी का दूसरा कार्यकाल होगा, यानी बीजेपी की एंटी इन्कम्बेंसी का फ़ायदा कांग्रेस नहीं उठा पाई और बीजेपी ने 126 सीटों वाली विधानसभा में अपने साझीदारों के साथ मिलकर आसानी से बहुमत का आँकड़ा पार कर लिया.
कांग्रेस ने असम चुनावों में पूरी ताक़त झोंक दी थी, गठबंधन सहयोगियों ने भी पूरी मेहनत की थी लेकिन कांग्रेस इस बार कुछ सीटें तो बढ़ा सकी लेकिन बहुमत तक नहीं पहुँच सकी.
DILIP SHARMA/BBC
राजनीतिक विश्लेषक इसे पार्टी के लिए बड़े झटके के तौर पर देख रहे हैं. उर्मिलेश कहते हैं, "असम में कांग्रेस इससे बहुत बेहतर कर सकती थी. सीटें बढ़ने के बावजूद इसे कांग्रेस पार्टी की नाकामी और हार की तरह ही देखा जाना चाहिए."
वहीं अपर्णा द्विवेदी मानती हैं कि असम बीजेपी का मज़बूत गढ़ बन चुका है, ऐसे में कांग्रेस के लिए रास्ते वहाँ आसान नहीं थे. अपर्णा कहती हैं, "जिन-जिन राज्यों को कांग्रेस हार जाती है वहाँ उसकी वापसी मुश्किल हो जाती है. असम में भी यही हुआ है. कांग्रेस का जनाधार यहाँ ख़त्म हो गया है. शायद कांग्रेस ये समझ नहीं पा रही है कि उसकी ज़मीन खिसक गई है."
अपर्णा कहती हैं, "बीजेपी जानती थी कि वह असम में मज़बूत है इसलिए ही पार्टी ने अपना पूरा फ़ोकस पश्चिम बंगाल पर किया. कांग्रेस के पास असम में बहुत ज़्यादा अवसर नहीं थे. प्रियंका गांधी ने ज़रूर मेहनत की, लेकिन उसके भी वांछित नतीजे नहीं मिल सके."
विजयन के आगे बेदम
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कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती केरल में सत्ता में वापसी करने की थी. केरल का अभी तक का इतिहास है कि हर पाँच साल बाद वहाँ परिवर्तन होता है लेकिन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) की अगुवाई में एलडीएफ़ लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल करने में कामयाब रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि केरल में कांग्रेस की हार पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में उम्मीदों को भी झटका है. सबसे बड़ा झटका राहुल गांधी के लिए है जो अमेठी में चुनाव हारने के बाद अब केरल के वायनाड से सांसद हैं. उन्होंने पिछले कुछ महीनों में दक्षिण भारत में, और ख़ास तौर पर केरल में, उत्तर भारत की तुलना में राजनीतिक तौर पर सक्रियता दिखाई थी.
अपर्णा कहती हैं, "अमेठी में हारने के बाद राहुल गांधी ने केरल को ही अपना गढ़ बनाया है, ऐसे में केरल में जीतना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती थी. कांग्रेस ने चुनाव अभियान के दौरान अपनी पूरी ताक़त केरल में लगा दी थी. ये राहुल गांधी के लिए अपना सियासी रास्ता मज़बूत करने का भी अवसर था. ऐसे में कांग्रेस की यहाँ हार बेहद निराशाजनक है."
केरल में 140 सदस्यों वाली विधानसभा में लेफ़्ट गठबंधन (एलडीएफ़) को 93 सीटें मिली हैं, दरअसल एलडीएफ़ ने न सिर्फ़ अपनी सत्ता क़ायम रखी है, बल्कि 2016 के मुक़ाबले उसने दो सीटों की बढ़त हासिल की है. वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन (यूडीएफ़) को 40 सीटें मिली हैं जो पिछले चुनावों से छह कम हैं. कांग्रेस की अपनी एक सीट कम हुई है.
कोविड महामारी के बीच एलडीएफ़ ने केरल में सत्ता में वापसी की है. ये अपने-आप में एक इतिहास भी है क्योंकि केरल में जनता हर पाँच साल में सत्ताधारी पार्टी को बदल देती है.
अपर्णा द्विवेदी मानती हैं कि हाल के सालों में कांग्रेस के लिए राजनीति में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है और इसकी एक बड़ी वजह ये है कि पार्टी ने अपने खोए हुए ज़मीनी जनाधार को हासिल करने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की है.
अपर्णा कहती हैं, "पिछले सात सालों से राजनीति कांग्रेस के हित में नहीं जा रही है. कांग्रेस जितनी जल्दी ये समझ ले उतना उसके लिए बेहतर होगा. इसका कारण ये है कि कांग्रेस ज़मीनी स्तर पर ख़त्म होती जा रही है. गठबंधन कर-करके कांग्रेस ने दूसरे दलों को अपनी ताक़त दे दी है, लेकिन दूसरों से उसे कहीं कुछ हासिल नहीं हुआ है."
तमिलनाडु और पुड्डुचेरी
जिन पाँच राज्यों में चुनाव हुए हैं, वहाँ सिर्फ़ तमिलनाडु में ही कांग्रेस सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा रहेगी. यहाँ कांग्रेस को 16 सीटें मिली हैं जो पिछले चुनावों के मुक़ाबले दोगुनी हैं, 2016 में आठ सीटें ही मिल पाई थीं.
वहीं केंद्र शासित प्रदेश पुड्डुचेरी में भी कांग्रेस ने सत्ता गँवा दी है. वहाँ पार्टी को सिर्फ़ आठ सीटें मिली हैं पिछले चुनावों में जीती हुई नौ सीटें पार्टी ने गँवा दी है.
यानी कांग्रेस को हर जगह हार ही हार देखने को मिली है, उसके लिए मामूली राहत की बात ये हो सकती है कि तमिलनाडु और असम में उसकी सीटों की तादाद बढ़ी है, लेकिन उसका कोई ठोस राजनीतिक लाभ उसे नहीं मिलने जा रहा है.
इन चुनावों में कांग्रेस के लिए एक राहत की बात ये भी है कि उसने मध्य प्रदेश के दमोह उप-चुनाव को जीत लिया है.
बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दमोह उप-चुनाव को अपनी नाक का मुद्दा बना लिया था. यहाँ जीत हासिल करके टूटी हुई कांग्रेस को राज्य में ज़रूर कुछ मनोबल मिलेगा. (bbc.com/hindi)
दिलीप कुमार शर्मा
गुवाहाटी से, 3 मई : असम विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस और मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ़) के गठबंधन को पछाड़कर नया रिकॉर्ड बनाते हुए सत्ता में वापसी की है.
दरअसल बीजेपी असम में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने वाली पहली ग़ैर कांग्रेस पार्टी है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम में अपनी पार्टी की जीत पर एक ट्वीट कर कहा, "असम के लोगों ने एनडीए के विकास एजेंडे और राज्य में लोक समर्थक ट्रैक रिकॉर्ड वाली हमारी सरकार को फिर से आशीर्वाद दिया है. मैं असम के लोगों को इस आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देता हूँ. मैं एनडीए के कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत और लोगों की सेवा में उनके अथक प्रयासों की सराहना करता हूँ."
भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने भी असमिया भाषा में एक ट्वीट कर शांति, सुशासन और विकास की राजनीति को फिर चुनने के लिए असम की जनता का हृदय से आभार व्यक्त किया.
लेकिन क्या सही में इस बार असम का विधानसभा चुनाव विकास की राजनीति के इर्द गिर्द रहा या फिर सामने आए चुनावी नतीजे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण ज़्यादा प्रभावित हुए?
असल में इस बार के असम विधानसभा चुनाव में एनआरसी, नागरिकता संशोधन क़ानून, चाय श्रमिकों की मज़दूरी, छह जनजातियों के जनजातिकरण से लेकर बेरोज़गारी जैसे कई अहम मुद्दे थे, लेकिन इन सबसे बीजेपी के प्रदर्शन पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
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हिमंत बिस्वा सरमा
क्या रहे कारण?
वैसे तो इन चुनावी नतीजों को लेकर राजनीतिक समीक्षक कई अलग-अलग कारण बता रहे हैं, लेकिन इनमें अधिकतर लोगों का यह मानना है कि कांग्रेस के लिए मौलाना बदरुद्दीन अजमल को साथ लेना बहुत महंगा साबित हुआ.
असम के वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ नाथ गोस्वामी की मानें, तो कांग्रेस-एआईयूडीएफ़ के गठबंधन के सहारे बीजेपी को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का अच्छा मौक़ा मिल गया.
असम में बीजेपी की इस जीत पर गोस्वामी ने बीबीसी से कहा, "इस बार के चुनाव में सीएए-एनआरसी, जनजातिकरण, चाय श्रमिकों की मज़दूरी जैसे मुद्दों को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि बीजेपी के लिए इस बार का चुनाव बेहद कठिन होगा. लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में जो महागठबंधन बना, उसमें बदरुद्दीन अजमल की पार्टी को साथ लेने से बीजेपी के लिए हिंदू वोटरों को एकजुट करना आसान हो गया. "
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"बीजेपी नेताओं ने अपनी चुनावी रैलियों में इस गठबंधन को लेकर आक्रामक रवैया अपनाया. लोगों से यह कहा गया कि अगर महागठबंधन की जीत होती है तो बदरुद्दीन अजमल राज्य के मुख्यमंत्री बन जाएँगे और असम में घुसपैठियों का बोलबाला हो जाएगा. राज्य में हर तरफ़ मस्जिदों का निर्माण किया जाएगा. लिहाज़ा चुनावी रैलियों में आए मतदाता ख़ासकर ग्रामीण मतदाता सीएए जैसे मुद्दे भूल गए."
"सामने आए चुनावी नतीजों से यह बात अच्छी तरह समझी जा सकती है कि ऊपरी असम की जिन 60-62 सीटों पर बीजेपी को नुक़सान होने का अनुमान लगाया जा रहा था, वहां पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन कर दिखाया. क्योंकि सीएए का सबसे ज़्यादा विरोध ऊपरी असम में ही हुआ था. लेकिन इसके बाद भी वहाँ लोगों ने बीजेपी को ही वोट डाला."
गोस्वामी कहते है, "इसके अलावा प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर कांग्रेस यहाँ के मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने में नाकाम रही कि राज्य में वह बीजेपी का विकल्प है. प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के बीच जो आपसी मतभेद थे वो जनता के सामने आ गए थे. "
"दूसरी तरफ बीजेपी सरकार की कुछ प्रमुख योजनाओं में महिला मतदाताओं को काफी फायदा दिया गया. ओरुनोदोई योजना में महिलाएँ लाभार्थी काफ़ी थी, वो वोट भी पार्टी के पक्ष में गया. इसके अलावा पिछली बार बोडोलैंड में 12 सीटें जीतने वाली बीपीएफ़ पार्टी बीजेपी से अलग होने के बाद महागठबंधन में तो शामिल हुई, लेकिन उसके खराब प्रदर्शन के कारण महागठबंधन को कोई फ़ायदा नहीं हुआ. बीपीएफ़ बोडोलैंड में आधी सीट भी नहीं ला सकी."
महिलाओं का समर्थन
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बीजेपी सरकार ने परिवार की प्राथमिक देखभाल करने वाली महिलाओं को ओरुनोदोई योजना के तहत 830 रुपए प्रतिमाह बतौर वित्तीय सहायता देने की योजना शुरू की थी, जिसका फायदा करीब 17 लाख परिवार को पहुँचाया गया था. आँकड़े बताते है कि इस योजना का फ़ायदा मुसलमान महिलाओं को भी मिला. लिहाज़ा इस बार बड़ी संख्या में महिलाओं ने बीजेपी को वोट किया.
गोस्वामी की मानें, तो सीएए के विरोध के बाद राज्य में बने दो राजनीतिक दल असम जातीय परिषद और राइजोर दल ने भी महागठबंधन को काफ़ी नुकसान पहुँचाया. इन दो पार्टियों ने जो किया वही काम असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी कई राज्यों के चुनावों में करती रही है.
एक नई क्षेत्रीय पार्टी होने के बावजूद असम जातीय परिषद ने सत्तारूढ़ बीजेपी के बराबर 92 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए. इससे महागठबंधन के उम्मीदवारों के वोट बँट गए.
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण
असम की राजनीति को लंबे समय कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार नव कुमार ठाकुरिया बीजेपी की जीत के पीछे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को सबसे बड़ा कारण मानते है.
वो कहते है, "कांग्रेस-एआईयूडीएफ़ के एक साथ आने से असम के निचले इलाक़े के मुसलमान वोटर एक साथ आ गए. ठीक उसी तरह ऊपरी असम में इसके ख़िलाफ़ हिंदू वोटर भी एकजुट हो गए. "
"एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन कर कांग्रेस ने केवल इस चुनाव में ही नुक़सान नहीं उठाया है, बल्कि आगे भी पार्टी को नुक़सान उठाना पड़ेगा. क्योंकि कांग्रेस में अब इस बात को लेकर काफी घमासान होने वाला है और हो सकता है कि पार्टी में जो ग़ैर-मुसलमान विधायक और नेता है वो बीजेपी में चले जाएँ."
लेकिन क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद (एजीपी) के इस अच्छे प्रदर्शन के पीछे क्या कारण है?
इस सवाल का जवाब देते हुए पत्रकार ठाकुरिया कहते है, "असम गण परिषद के अच्छे प्रदर्शन का कारण बीजेपी का एलायंस पार्टनर होना है. असमिया क़ौमपरस्ती और भारतीय राष्ट्रवाद दोनों साथ में है लिहाजा जो वोटर क्षेत्रीयतावादी पार्टी के लिए वोट डाल रहा है वो खुद को सुरक्षित महसूस कर रहा है. वह कांग्रेस के महागठबंधन में इसलिए नहीं गया क्योंकि उसके वोट का फायदा अजमल की पार्टी को मिलेगा."
ठाकुरिया की मानें तो सीएए विरोध से बने नए राजनीतिक दलों से कांग्रेस महागठबंधन को कोई ख़ास नुक़सान नहीं हुआ. क्योंकि असम आंदोलन के बाद जब 1985 में एजीपी ने सरकार बनाई थी उस समय भी पार्टी ने 126 सीटें नहीं जीती थी.
वो कहते हैं कि, "किसी भी पार्टी के लिए लोगों का सेंटीमेंट जरूर होता है लेकिन ऐसा नहीं है कि पूरा बहुमत किसी एक पार्टी को ही मिल जाए. सीएए का विरोध करने वाले जो वोटर थे वो भी बँट जरूर गए और उसका कुछ हिस्सा नई पार्टियों को गया होगा."
लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि 2021 के विधानसभा चुनाव राज्य की राजनीति को एक तरह से बदल दिया है. ऐसा कहा जा रहा है कि अब राज्य में प्रमुख मुक़ाबला बीजेपी और एआईयूडीएफ़ के बीच ही होगा जो पूरी तरह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए लड़ा जाएगा. (bbc.com/hindi)
जामुडिय़ा सीट से माकपा प्रत्याशी आयशी घोष को ग्रामीण महिलाओं से काफी उम्मीदें
स्टारडम के बदौलत आसनसोल दक्षिण सीट में जमकर प्रचार कर रही तृणमूल प्रार्थी सायनी घोष
पश्चिम बर्धमान की नौ सीटों में एक सीट बाराबनी में भाजपा ने भी खड़ा किया भाजयुमो नेता अरिजीत को
बिकास के शर्मा
आसनसोल, 11 अप्रैल (‘छत्तीसगढ़’)। राजनीति की दुनियां में युवाओं का क्रेज बढ़ा है। इसी वजह से पश्चिम बर्धमान जिले की नौ में से चार सीटों पर युवाओं बुलंद हौसले युवाओं में ही मिलती है यही कारण है कि अपनी बुलंद हौसले को लेकर कई युवा चेहरे चुनाव के मैदान में कूदे हैं। युवा चेहरों को चुनाव लडऩे का मौका देने में तृणमूल कांग्रेस और सीपीआईएम सबसे आगे है। सीपीआईएम ने लगभग क्षेत्रों में युवा चेहरों को ही उतारा है। दूसरे स्थान पर तृणमूल कांग्रेस है और तीसरे स्थान पर भाजपा है। केवल पश्चिम बर्दवान की नौ विधानसभा क्षेत्रों की अगर बात करें तो यहां की जामुडिय़ा और पांडवेश्वर से माकपा ने युवा चेहरे को उतारा है। तृणमूल कांग्रेस की बात करें तो इसने भी आसनसोल दक्षिण से युवा चेहरा सायनी घोष को चुनाव लडऩे का मौका दिया है। इनके अलावा इन नौ विधानसभा से कई निर्दलीय युवा चेहरे भी अपने से उम्र में बड़े धुरंधर चेहरों को मात देने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं।
जेएनयू कैंपस में हमले के बाद सुर्खियों में आयी आयशी घोष
जामुडिय़ा से सीपीआईएम की 26 वर्षीय प्रत्याशी आयशी घोष जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्र संघ की अध्यक्ष भी हैं जो पश्चिम बंगाल की ही रहने वाली हैं। छात्र संघ की राजनीति में परचम लहराने के बाद अब आयशी राजनीति के असल मैदान में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतरीं हैं। वर्ष 2020 में जब जेएनयू में हमलावर घुसे थे तो उस समय आयशी घोष की फोटो खूब वायरल हुई थी और उन्हें चोट भी आयी थी। उस समय अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने आकर आयशी का समर्थन किया था। तब से आयशी सुर्खियों में आयीं। जामुडिय़ा सीट से वर्ष 2016 में सीपीआईएम के ही जहांआरा खान जीते थे। इस बार आयशी तृणमूल कांग्रेस के 67 वर्षीय हरेराम सिंह को मुकाबला देने के लिए मैदान में उतरीं हैं।
सायनी घोष (आसनसोल दक्षिण क्षेत्र में बच्चों से मिलतीं तृणमूल प्रार्थी सह अभिनेत्री सायनी घोष)
टॉलीवूड अभिनेत्री सायनी सोशल मीडिया पर वायरल
परदे की दुनियां से सीधे राजनीति में कदम रखने वाली 28 वर्षीय सायनी घोष को तृणमूल कांग्रेस ने आसनसोल दक्षिण से प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा है। हीरेंद्र लीला पत्रानविश स्कूल जादवपुर से 10+2 पास सायनी ने कम समय में ही परदे की दुनियां में खूब सुर्खियां बटोरी। जीटीवी पर आने वाले एपिसोड दीदी नंबर वन से सायनी घोष सुर्खियों में आयीं। इसके बाद उनकी सुर्खियों को देखते हुए तृणमूल कांग्रेस ने आसनसोल दक्षिण से इन्हें प्रत्याशी बनाया है। अपने चुनावी इलाके में सायनी बुलंद हौसेले के साथ पसीना भी बहा रहीं हैं। यहां भाजपा की प्रत्याशी प्रख्यात फैशन डिजाइनर 48 वर्षीय अग्निमित्रा पाल को चुनावी मैदान में पस्त करने के लिए पूरा दमखम लगा रहीं है। हालांकि यह सीट पहले तृणमूल के ही तापस राय जीता करते थे। लेकिन इस बार तृणमूल कांग्रेस ने तापस राय का सीट चेंज कर दिया है उन्हें रानीगंज भेज दिया गया है।
अपने से 22 वर्ष बड़े को देंगे टक्कर अरिजीत
भाजपा ने बाराबनी में भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के युवा चेहरे 29 वर्षीय अरिजीत राय को चुनाव मैदान में उतारा है। अपने काम व पार्टी में अच्छी पकड़ रखने के बदौलत अरिजीत राय को दोबारा युवा मोर्चा का जिला ध्यक्ष बनाया गया था। इस बार भाजपा ने अरिजीत को युवा मोर्चा से सीधे चुनाव के मैदान में भेज दिया है। अरिजीत ने कला संकाय में नेताजी सुभाष ओपन विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की है। यहां से तृणमूल के विधायक रहे 51 वर्षीय विधान उपाध्याय को टक्कर देने के लिए मैदान में उतरे हैं।
कई युवा निर्दलीय ने भी धुरंधरों को टक्कर देने को तैयार
पश्चिम बर्दवान की नौ सीटों पर कई युवा चेहरों ने निर्दलीय व अन्य पार्टी के प्रत्याशी के रूप में नामांकन भी किया है। इनमें आसनसोल उत्तर से एआईएमआईएम के 26 वर्षीय दानिश अजीज, दुर्गापुर पूर्व से निर्दलीय नयन मंडल, आसनसोल दक्षिण से निर्दलीय के रूप में 28 वर्षीय शिउली रुईदास, कुल्टी विधानसभा से बसपा के प्रत्याशी के रूप में 28 वर्षीय बापी रविदास, रानीगंज से निर्दलीय के रूप में 28 वर्षीय अभिजीत बाउरी, पूर्वाचल महापंचायत के प्रत्याशी के रूप में 29 वर्षीय नीरज रजक भी युवा चेहरा बन कर चुनावी मैदान में धुरंधरों से लड़ाई लडऩे के लिए नामांकन किया है।
(मूलत: पश्चिम बंगाल के निवासी लेखक युवा पत्रकार हैं और आईसीएफजे, यूएसए, के फेलो रहे हैं)
तृणमूल कांग्रेस मुख्यमंत्री ममता, भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर मांग रही वोट
प्रार्थी सह विधायक की सरल छवि को भुनाने में जुटी तृणमूल, कांग्रेस कर रही तीसरे विकल्प का दावा
पिछली बार की तरह इस बार भी तृणमूल के उज्जवल चटर्जी और भाजपा के डॉ अजय कुमार पोद्दार में सीधा मुकाबला
बिकास के शर्मा
आसनसोल, 5 अप्रैल (‘छत्तीसगढ़’) । पश्चिम बर्धमान जिले की अहम सीट कुल्टी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी डॉ अजय कुमार पोद्दार जहाँ एक ओर कुल्टी क्षेत्र में प्रचार के दौरान लोगों को विधायक उज्जवल चटर्जी को एक निष्क्रिय जनप्रतिनिधि के रूप में बताकर अपने पक्ष में मतदान करने की अपील कर रहे हैं, तो वहीँ तृणमूल प्रार्थी श्री चटर्जी पिछले 10 दिनों में इलाके में घूमते हुए पार्टी सुप्रीमो और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को तीसरी बार जिताने के लिए वोट मांगते नजर आ रहे हैं। कुल्टी में चाहे सत्ताशीन तृणमूल हो अथवा मुख्य विपक्षी होने को दावा ठोकने वाली भाजपा, दोनों ही दलों ने स्थानीय मुद्दों को भूलकर अपने-अपने दलों के शीर्ष नेताओं के नाम पर चुनाव प्रचार अभियान शुरू किया। झारखंड के धनबाद जिले की सीमा लगा कुल्टी इलाका मूल रूप से एक समय एशिया के प्रसिद्ध ईस्को कारखाना और कोलियरियों के लिए पूरे पश्चिम बंगाल में जाना जाता था। साथ ही वहां के बराकर नगर की गल्ला मंडी की भी तीन दशक पूर्व एक विशेष ख्याति थी, जो नियामतपुर के विकसित होने एवं कल्याणेश्वरी रोड स्थित रेल ब्रिज पर बड़े वाहनों की आवाजाही बंद कर दिए जाने से प्रभावित हुई है। चुनाव को लेकर फ़िलहाल कुल्टी क्षेत्र के मतदाताओं में शांति है। कुछ लोग बदलाव की बात पर मौन स्वीकृति देते हुए आपको लोग मिल जायेंगे, तो स्थानीय विधायक के समर्थकों की एक लंबी फेहरिस्त भी तृणमूल कांग्रेस के लिए चुनाव में कारगर साबित हो सकती है। भाजपा प्रत्याशी डॉ पोद्दार ने कहा- 'तीन बार से उज्जवल चटर्जी विधायक हैं और पंद्रह वर्ष तक कुल्टी नगरपालिका के अध्यक्ष भी रहे किंतु क्या इलाके में कोई नए उद्योगों या रोजगारों का सृजन करने में उन्होंने कोई प्रयास भी किये हैं? कुल्टी में बदलाव निश्चित होगा और भाजपा को एक लाख मत प्राप्त होंगे।'
इस सीट पर तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर है, हालांकि गठबंधन समर्थित कांग्रेस प्रत्याशी भी अपने जीत को लेकर दावा करते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस प्रार्थी चंडी चटर्जी ने कहा कि साल 2016 में गठबंधन उम्मीदवार ने 43 हजार वोट लाये थे, जिसका सीधा अर्थ है कि हमें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। श्री चटर्जी की मानें तो जनता तृणमूल कांग्रेस और भाजपा से तंग आ चुकी है क्यों कि दोनों ही दलों ने लोगों के अंदर आपसी भेदभाव को पैदा किया है और सांप्रदायिक राजनीति को आधार बनाकर चुनाव की वैतरणी पार लगाना चाहते हैं, ऐसे में संयुक्त मोर्चा एक ठोस विकल्प जनता के सामने है।
कुल्टी सीट तृणमूल कांग्रेस के लिए इस लिए भी अहम मानी जा रही है कि वर्ष 2006 में वाममोर्चा को मिले भारी बहुमत के दौरान भी तत्कालीन फॉरवर्ड ब्लॉक विधायक मानिकलाल आचार्या को टीएमसी प्रत्याशी सह निवर्तमान विधायक श्री चटर्जी ने 17 हजार मतों से पराजित किया था। उसके बाद से आज तक टीएमसी ही लगातर तीन बार चुनाव जीत चुकी है। कुल्टी सीट पर आगामी 26 अप्रैल को मतदान होगा और किसी भी दल के प्रत्याशी ने अभी तक नामांकन पर्चा नहीं भरा है।
जनसंपर्क अभियान के दौरान अपने समर्थकों संग भाजपा प्रार्थी
लोकसभा चुनावों की बढ़त से भाजपा के हौसले बुलंद
विधानसभा क्षेत्र वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने आसनसोल सीट से गायक बाबुल सुप्रियो को टिकट दिया था। उस वक्त कुल्टी विधानसभा इलाका उनके लिए काफी माकूल रहा और उन्होंने 42 हजार मतों से बढ़त हासिल की थी। एक तृणमूल नेता ने नाम छिपाने की शर्त पर बताया कि तब तृणमूल विधायक श्री चटर्जी के लिए पार्टी आलाकमान को जवाब देना मुश्किल हो गया था कि आखिर क्यों भाजपा को वहां से बढ़त मिली। श्री चटर्जी ने पार्टी के कुछ पार्षदों पर अपना रोष भी व्यक्त किया था। वर्ष 2019 में मोदी लहर लोगों के और सर चढ़कर बोला और कुल्टी से भाजपा ने 72 हजार मतों से विधानसभा इलाके से बढ़त हासिल की थी। इसके बाद कुल्टी में तृणमूल कांग्रेस ने ब्लॉक अध्यक्ष महेश्वर मुखर्जी को पद से हटाकर पूर्व नपाध्यक्ष विमान आचार्या को आसीन किया था। भाजपा संयोजक राजेश सिन्हा ने बताया कि उनकी पार्टी इलाके में केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं का लाभ जनता को भाजपा के कार्यकर्ताओं ने घर-घर पहुंचाया। जिसकी बदौलत आज संगठन काफी मजबूत दिखाई दे रहा है। श्री सिंहा ने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार पार्टी की स्थिति ज्यादा मजबूत है और सदस्यता भी तीन गुना बढ़ी है।
हिंदी भाषियों को आकर्षित कर रहे सभी दल
इस बार के चुनाव में भाजपा ज्यादा सक्रियता के साथ प्रचार करती हुई दिखाई दे रही है, तो वहीं तृणमूल नेताओं की मानें तो उन्हें जीत को लेकर कोई शंका नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा द्वारा हिंदी भाषी प्रत्याशी दिए जाने के कारण तृणमूल के लिए बंगाली वोटर्स के बीच में कम और हिंदी भाषी मतदाताओं के बीच ज्यादा काम किया जा रहा है। साथ ही तृणमूल ने हिंदी भाषी संग दीदी कार्यक्रम के तहत पिछले डेढ़ माह में कुल्टी क्षेत्र में आधा दर्जन कार्यक्रमों के माध्यम से एक दशक में राज्य सरकार द्वारा हिंदी भाषियों के लिए किये गए की कार्यों को जनता से साझा किया है। भाजपा नेता विभाष सिंह ने बताया कि चुनाव के पूर्व और भाजपा के बढ़ते जनाधार से परेशान होकर तृणमूल कांग्रेस को हिंदी भाषियों की याद आई है। लेकिन तृणमूल कांग्रेस हिंदी प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष मनोज यादव ने कहा कि भाजपा अपनी बहिरागत सोच से कभी उबर नहीं पायेगी। उनकी मानें तो कुल्टी ही नहीं अपितु पूरे राज्य में डेढ़ सौ वर्षों से भी अधिक समय से हिंदी भाषी रह रहे हैं। उनके हितों की रक्षा किसी पूर्वर्ती सरकार नहीं बल्कि केवल तृणमूल कांग्रेस ने ही की है। श्री यादव ने कहा कि भाजपा यहाँ के हिंदी भाषियों को बाहरी मानती है, जबकि तृणमूल भाजपा की सोच को बहिरागत मानती है। उन्होंने दावा किया कि कुल्टी के हिंदी भाषी मतदाता तृणमूल प्रार्थी के साथ पिछले चुनाव में भी थे और इस बार भी हैं।
सभी प्रत्याशियों का डोर-टू-डोर प्रारंभ
चुनाव की तिथि के नजदीक आते ही सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी-अपनी रणनीति के तहत तैयारियां शुरू कर दी हैं। भाजपा प्रार्थी ने अपने प्रचार की शुरुआत कल्याणेश्वरी मंदिर में पूजा कर की थी तो तृणमूल प्रत्याशी श्री चटर्जी भी बिना किसी तामझाम के अपने समर्थकों संग क्षेत्र में जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं। दीवार लेखन और सोशल मीडिया पर प्रचार एक साथ ही दोनों प्रत्याशियों द्वारा किया जा रहा है। कांग्रेस प्रार्थी को वाममोर्चा का समर्थन होने की वजह से कुछ स्थानों पर उनका भी दीवार लेखन दिखाई दे रहा है। लेकिन उनके जनसंपर्क अभियान में अभी थोड़ी शिथिलता है। भाजपा प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए परिवर्तन और अबकी बार 2 सौ पार के नारों के माध्यम से जनता को लुभा रही है तो स्थानीय तृणमूल कांग्रेस कर्मी सीएम एवं निवर्तमान विधायक की साफ़ छवि को हथियार बनाकर प्रचार में जुटी है।
2016 में 19488 से हुई थी तृणमूल की जीत
पिछले विधानसभा चुनाव में निवर्तमान विधायक श्री चटर्जी ने चुनाव जीता था। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी डॉ पोद्दार को 19,488 वोटों से हराया था। तृणमूल कांग्रेस को जहाँ 68,952 मत प्राप्त हुए थे वहीँ भाजपा को 49,464 वोट मिले थे। गठबंधन की ओर से कांग्रेस ने अभिजीत आचार्या (बाप्पा) को टिकट दिया था और वे 42,895 वोट लाकर तीसरी स्थान पर रहे थे। वर्तमान में श्री आचार्या भाजपा के सदस्य हैं, जिनकी बदौलत भाजपा प्रार्थी कुल्टी के दक्षिण-पश्चिम इलाके में खुद को मजबूत करने में जुटे हुए हैं। हालांकि श्री आचार्या बहुत खुलकर पार्टी के लिए प्रचार करते हुए पूरे कुल्टी इलाके में नजर नहीं आ रहे हैं।
(मूलतः पश्चिम बंगाल के निवासी लेखन युवा पत्रकार हैं और आईसीएफजे, यूएसए, के फेलो रहे हैं)
नई दिल्ली, 2 अप्रैल | केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के पहले दो चरणों में 60 सीटों में से 50 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करेगी। राज्य में पहले चरण में 27 मार्च को 30 सीटों पर और दूसरे चरण में एक अप्रैल को 30 सीटों पर चुनाव हुआ था।
पश्चिम बंगाल में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए, शाह ने कहा, "बंगाल चुनाव के पहले दो चरण में भाजपा 60 में से 50 से अधिक सीटें जीत रही है और दीदी (मुख्यमंत्री ममता बनर्जी) खुद नंदीग्राम से हार रही हैं।"
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि गुरुवार की समीक्षा बैठक के बाद पार्टी को नंदीग्राम जीतने का भरोसा है। उन्होंने कहा, "भारी प्रतिक्रिया मिली है और नंदीग्राम से प्राप्त रिपोर्ट्स से पता चलता है कि अधिकारी (सुवेंदु) आराम से जीत रहे हैं।"
ममता बनर्जी का सामना नंदीग्राम से भाजपा के सुवेंदु अधिकारी के साथ हुआ था, जो कि विधानसभा चुनाव से पहले ही तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भगवा पार्टी में शामिल हुए हैं।
गुरुवार को मतदान समाप्त होने से पहले, भाजपा ने दावा किया कि अधिकारी चुनाव जीत रहे हैं। अधिकारी ने गुरुवार को वोट डालने के बाद कहा था, "नंदीग्राम के हर व्यक्ति के साथ मेरे व्यक्तिगत संबंध हैं। मुझे चुनाव जीतने का पूरा विश्वास है।" (आईएएनएस)
अगरतला, 2 अप्रैल| भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को हराकर जीत हासिल करेगी और इसके साथ ही असम में सत्ता बरकरार रखेगी। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने शुक्रवार को यह बात कही। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी 294 सदस्यीय पश्चिम बंगाल विधानसभा में 175 या अधिक सीटों पर जीत दर्ज करेगी।
मुख्यमंत्री ने कहा, "असम में कांग्रेस या किसी अन्य विपक्षी पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं है। भाजपा असम में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता बनाए रखेगी। चुनाव के बाद असम में विपक्षी सदस्य मुक्त विधानसभा होगी।"
त्रिपुरा में सीपीआई-एम और कांग्रेस का कोई अस्तित्व नहीं होने का दावा करते हुए देब ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास मिशन के प्रभाव से हर कोई भाजपा में शामिल हो रहा है। (आईएएनएस)
गुवाहाटी, 2 अप्रैल | चुनाव आयोग ने गुरुवार शाम को भाजपा उम्मीदवार की पत्नी के वाहन में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पाए जाने के बाद दक्षिणी असम के एक मतदान केंद्र पर दोबारा चुनाव कराने का आदेश दिया है। चुनाव आयोग ने एक बयान में कहा कि पीठासीन अधिकारी और तीन अन्य अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। साथ ही रतबारी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत इंदिरा एम.वी. मतदान केंद्र पर दोबारा मतदान करवाने के आदेश दिए हैं।
बयान में कहा गया है, "हालांकि ईवीएम की सील बरकरार पाई गई थी, लेकिन फिर भी एहतियात के तौर पर इंदिरा एम.वी. मतदान केंद्र में दोबारा मतदान कराने का निर्णय लिया गया है।
आयोग ने घटना के बारे में विशेष पर्यवेक्षक से रिपोर्ट भी मांगी है।
बयान में कहा गया है कि करीमगंज ईवीएम मशीन ले जा रहे अधिकारियों की कार खराब हो गई, जिसके बाद वे पास से गुजर रहे एक निजी वाहन में बैठ गए, जहां 50 से अधिक लोगों ने पथराव शुरू कर दिया।
कनैसिल (करीमगंज जिले के अंतर्गत) में भीड़ ने आरोप लगाया कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जा रही थी। निजी कार पड़ोसी पथरकंडी निर्वाचन क्षेत्र के भाजपा उम्मीदवार कृष्णेंदु पॉल की पत्नी की थी।
बयान में कहा गया है कि गुरुवार की रात हुई भारी बारिश और सड़कों पर कीचड़ होने के कारण मतदान कर्मियों की आधिकारिक कार खराब हो गई और फिर वे अपने निजी ईवीएम और अन्य सामग्रियों के साथ वाहन के स्वामित्व की जांच किए बिना एक निजी वाहन पर सवार हो गए।
घटना की जानकारी मिलने के तुरंत बाद, जिला पुलिस अधीक्षक (एसपी) के साथ करीमगंज के जिला चुनाव अधिकारी घटनास्थल पर रात 10.20 बजे वहां पहुंचे। गुरुवार की रात को पथराव के दौरान, करीमगंज के एसपी मयंक कुमार को मामूली चोट लग गई और भीड़ को तितर-बितर करने के लिए हवा में गोली चलाने का सहारा लेना पड़ा। (आईएएनएस)
सैय्यद मोजिज इमाम जैदी
नई दिल्ली, 26 मार्च | विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस में गुटबाजी बढ़ गई है और सूत्रों का कहना है कि कई नेताओं के पार्टी से बाहर होने के बाद केरल में कांग्रेस टुकड़ों में बंटी नजर आ रही है।
राज्य में पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी और विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला के बीच बंटी हुई है, लेकिन अब एक और गुट उभरकर सामने आ रहा है जिसका नेतृत्व राहुल गांधी के करीबी और पार्टी के महासचिव के.सी. वेणुगोपाल कर रहे हैं।
पार्टी के हाई प्रोफाइल नेता पी.सी. चाको और कई अन्य नेताओं के जाने के बाद गुटबाजी साफ नजर आ रही है। हालांकि, सोनिया गांधी के समय पर हस्तक्षेप करने के कारण पूर्व केंद्रीय मंत्री के.वी. थॉमस पार्टी में रुक गए गए। सूत्रों का कहना है कि मामला अभी भी खत्म नहीं हुआ है और यदि पार्टी चुनाव हारती है तो इसकी वजह गुटबाजी ही होगी।
सूत्रों का कहना है कि वेणुगोपाल के बढ़ते दबदबे से पार्टी के नेता खफा हैं, क्योंकि उन्होंने पर्यवेक्षकों और स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों के जरिए उम्मीदवारों के नाम आगे बढ़ाने की कोशिश की। लिहाजा बाद में सोनिया गांधी ने हस्तक्षेप करके मामले को सुलझाया।
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस महासचिव तारिक अनवर इस तनाव को दूर करने और विधानसभा चुनाव में पार्टी को एलडीएफ के खिलाफ एकजुट रखने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। राहुल गांधी खुद भी खासतौर पर इस राज्य पर ध्यान दे रहे हैं। अगले हफ्ते वे 2 दिन तक यहां प्रचार भी करेंगे और राज्य के नेताओं से मिलेंगे। जाहिर है कांग्रेस राज्य में वापसी करने के लिए पूरी ताकत लगा रही है और पार्टी इसके लिए मजबूत चेहरा सामने रख रही है। चूंकि राहुल गांधी वायनाड से सांसद भी हैं इसलिए भी इन चुनावों में कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर है।
वैसे पूर्व मुख्यमंत्री ए.के. एंटनी के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर आगे ला रहे हैं, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह इस दौड़ में नहीं हैं। उन्होंने साफ कह दिया है, "राज्यसभा में मेरा कार्यकाल अगले साल पूरा हो रहा है और उसके बाद मैं तिरुवनंतपुरम लौटने की योजना बना रहा हूं। मैंने साफ कर दिया है कि मेरा राज्य की राजनीति में कोई रोल नहीं है और 2004 में भी मैं यह कह चुका हूं।" हालांकि उन्होंने कहा कि वह राज्य में पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं और उनके बेटे अनिल के. एंटनी राज्य कांग्रेस के सोशल मीडिया हेड हैं। (आईएएनएस)
कोलकाता, 25 मार्च| गृहमंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के झारग्राम में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि झारग्राम हरे भरे जंगल और लाल मिट्टी की भूमि है। आदिवासी भाइयों ने वर्षों से इस भूमि की संस्कृति संजो कर रखा है। मां, माटी मानुष का नारा देकर दीदी सत्ता में तो आई, लेकिन आपके लिए कुछ नहीं किया। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, "मैं आपके क्षेत्र की कठिनाइयों को जानता हूं, लेकिन कुछ कठिनाई ऐसी हैं जो पूरे बंगाल की है। दीदी जहां जहां घूमती हैं वहां लोगों और निर्दोष आदिवासियों को डराती हैं- खेला होबे, खेला होबे। अरे दीदी आप हमें क्या डराती हो, खेला होबे से हम डर जाएंगे क्या। दीदी आपको मालूम नहीं है, बंगाल का छोटा बच्चा भी फुटबॉल खेलता है, आपके 'खेला होबे' से कोई नहीं डरता।"
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, "पश्चिम बंगाल में आदिवासियों को प्रमाण पत्र चाहिए होता है तो पटवारी को कट मनी देना होता है, हमने तय किया है कि आदिवासियों के लिए ऑनलाइन प्रमाण पत्र की व्यवस्था करके 'कट मनी' को खत्म करेंगे। बंगाल के लिए गरीबों के हक का चावल व गेहूं जो नरेन्द्र मोदी जी भेजते हैं, वो टीएमसी के गुंडे खा जाते हैं। भाजपा सरकार बनने के बाद हम ऐसी व्यवस्था करेंगे कि आपके हक का राशन आपको ही मिले।" (आईएएनएस)
लालगुडी. लालगुडी तमिलनाडु का एक विधानसभा क्षेत्र है. विधानसभा चुनाव 2016 में यह निर्वाचन क्षेत्र द्रविड़ मुनेत्र कड़गम द्वारा जीता गया था. तमिलनाडु राज्य के तिरुचिरापल्ली जिले के अंतर्गत लालगुडी निर्वाचन क्षेत्र आता है. 2016 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में लालगुडी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं का कुल प्रतिशत 88.59 प्रतिशत दर्ज किया गया था. विधानसभा चुनाव 2021 में यहां वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा जागरुकता अभियान चलाया गया है. मतदाताओं को जागरूक करने के लिए बैनर पोस्ट का इस्तेमाल भी किया गया है. यहां 6 अप्रैल को मतदान और 2 मई को मतगणना होगी.
विधानसभा चुनाव 2016 में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के साउंडरापांडियन ए ने ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के विजयमूर्ति एम को 3837 वोटों के अंतर से हराकर सीट जीती थी. लालगुडी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र पेरम्बलुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है. 2019 के लोकसभा चुनावों में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के उम्मीदवार डॉ शिवरिवेंद्र टी को हराकर जीत हासिल की.
दिसंबर से अब तक टीएमसी के कम से कम डेढ़ दर्जन विधायक और नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. पश्चिम बंगाल में बीते दस वर्षों से सत्ता में रही तृणमूल कांग्रेस में असंतोष, बगावत और पलायन का दौरा काफी पहले ही शुरू हो गया था.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
पश्चिम बंगाल में बीते दस वर्षों से सत्ता में रही तृणमूल कांग्रेस में तो असंतोष, बगावत और पलायन का दौरा विधानसभा चुनाव के एलान के पहले ही शुरू हो गया था. लेकिन टीएमसी का घर तोड़ कर अपना घर बसाने की कोशिश और राज्य की 294 में से दो सौ सीटें जीतकर सरकार बनाने का दावा करने वाली बीजेपी भी अब इस आग से अछूती नहीं है. पार्टी में उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी होने के बाद से ही राजधानी कोलकाता समेत पूरे राज्य में पार्टी की अंदरूनी कलह सतह पर आ गई है. बाहरी उम्मीदवारों को थोपने से नाराज बीजेपी के पुराने नेताओं व कार्यकर्ताओं ने रविवार रात से ही तमाम इलाको में तोड़-फोड़ और विरोध प्रदर्शन का जो सिलसिला शुरू किया था वह जस का तस है. इस व्यापक असंतोष को ध्यान में रखते हुए ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने दौरे के कार्यक्रम में फेरबदल कर बीजेपी अध्यक्ष और प्रदेश नेताओं के साथ कोलकाता में सोमवार को पूरी रात आपात बैठक की और इस पर काबू पाने के उपायों पर विचार किया. इसबीच, मनोनीत राज्यसभा सदस्य रहते विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारी पर विवाद के बाद स्वपन दासगुप्ता ने मंगलवार को राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया.
बीजेपी ने तीसरे और चौथे दौर के सीटों के लिए उम्मीदवारों की जो सूची जारी की है उनमें केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो के अलावा लॉकेट चटर्जी, स्वपन दासगुप्ता और निशीथ प्रामाणिक जैसे सांसदों के नाम शामिल थे. उसके बाद ही राजनीतिक हलकों में पूछा जाने लगा कि क्या बीजेपी के पास ढंग के उम्मीदवारों का टोटा हो गया है जो उसे सांसदों को उतारना पड़ रहा है? उधर, टीएमसी की सूची में बस एक सांसद का नाम है. बीजेपी ने टीएमसी, कांग्रेस और सीपीएम से हाल में आए ज्यादातर दलबदलुओं के अलावा बांग्ला फिल्मोद्योग से जुड़े चार लोगों को भी उम्मीदवार बनाया है.
नाराजगी और विरोध प्रदर्शन
पार्टी की दूसरी सूची जारी होने के बाद रविवार रात से ही हुगली जिले में सिंगुर समेत विभिन्न इलाकों के अलावा कोलकाता स्थित पार्टी के दफ्तरों के सामने भी नाराज बीजेपी कार्यकर्ताओं ने जम कर हंगामा किया और नारेबाजी की. हुगली में सांसद लॉकेट चटर्जी की उम्मीदवारी के खिलाफ बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पार्टी के दफ्तर में तोड-फोड़ की गई. हावड़ा जिले की पांचला सीट पर स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उम्मीदवार के खिलाफ नाराजगी जताई और पार्टी के दफ्तर में तोड़-फोड़ की. इन लोगों की नाराजगी इस बात से है कि कहीं लाकेट चटर्जी जैसे सांसद को टिकट दे दिया गया है तो कहीं हाल में टीएमसी से आने वाले 89 साल के रबींद्रनाथ भट्टाचार्य समेत दूसरे दलबदलू नेताओं को. दूसरी सूची जारी होने के बाद टीएमसी ने आरोप लगाया था कि बीजेपी को ढंग के उम्मीदवार तक नहीं मिल रहे हैं.
हुगली के सिंगुर में रबींद्रनाथ भट्टाचार्य को टिकट देने के विरोध में बीजेपी के स्थानीय नेता संजय पांडे के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने पार्टी के पर्यवेक्षक और मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री का घेराव किया और उनको खरी-खोटी सुनाई. असंतुष्ट गुट भट्टाचार्य की उम्मीदवारी वापस लेने की मांग कर रहा है. हुगली के सप्तग्राम में तो एक बीजेपी कार्यकर्ता ने रेलवे की पटरी पर सिर रख कर जान देने की भी कोशिश की. हुगली जिले के चंदन नगर में नाराज बीजेपी कार्यकर्ताओं ने रैली निकाली और प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ नारे भी लगाए. हुगली जिले के निरुपम भट्टाचार्य तो जान देने के लिए रेल की पटरी पर जाकर सो गए. किसी तरह मना कर उनको वापस लाया गया.
पार्टी दफ्तर में तोड़फोड़
इन लोगों की नाराजगी इस बात से है कि कहीं लॉकेट चटर्जी जैसे सांसद को टिकट दे दिया गया है तो कहीं हाल में टीएमसी से आने वाले 89 साल के रबींद्रनाथ भट्टाचार्य समेत कई दूसरे नेताओं को. हुगली में सांसद लॉकेट चटर्जी की उम्मीदवारी के खिलाफ बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पार्टी के दफ्तर में तोड-फोड़ की है. वहां जिन सुबीर नाग का नाम उम्मीदवारी की होड़ में सबसे ऊपर था उन्होंने तो राजनीति से ही संन्यास ले लिया है. हावड़ा जिले की पांचला सीट पर स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उम्मीदवार के खिलाफ नाराजगी जताई और पार्टी के दफ्तर में तोड़-फोड़ की. सिंगुर में टीएमसी के निवर्तमान टीएमसी विधायक रबींद्रनाथ भट्टाचार्य की उम्मीदवारी के खिलाफ भी स्थानीय नेता लगातार विरोध जता रहे हैं.
बीजेपी की सिंगुर शाखा के उपाध्यक्ष संजय पांडे कहते हैं, “हम पार्टी नेतृत्व से उम्मीदवार को बदलने की मांग कर रहे हैं. आखिर कितने पैसों का लेन-देन हुआ है? सांसद लॉकेट चटर्जी और प्रदेश अध्यक्ष इसका जवाब दें. रबींद्रनाथ उर्फ मास्टर मोशाय ने सीधे केंद्रीय नेतृत्व से संपर्क कर पार्टी ज्वाइन की थी. हमने इसे भी स्वीकार कर लिया. लेकिन अब उनको उम्मीदवार बनाना हमें मंजूर नहीं है.” पांडे कहते हैं कि उनकी उम्र 89 साल है जबकि पार्टी अस्सी से ऊपर वालों को टिकट नहीं देने की बात कहती रही है. क्या वे लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से भी बड़े कद के नेता हैं?”
टिकट न मिलने पर बगावत
हुगली जिले कोन्ननगर में बीजेपी के संभावित उम्मीदवार रहे बीजेपी नेता कृष्णा भट्टाचार्य ने तो निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतरने का फैसला किया है. उस सीट पर टीएमसी से आए प्रबीर घोषाल को टिकट दिया गया है. कोलकाता में बीजेपी के सांसद अर्जुन सिंह को भी कार्यकर्ताओं की नाराजगी का शिकार होना पड़ा. बैरकुर के बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह को भी कार्यकर्ताओं की नाराजगी का शिकार होना पड़ा. अर्जुन सिंह कहते हैं, “हमने राज्य की सभी विधानसभा सीटों के बारे में स्थानीय नेताओं की शिकायतें सुनी हैं. हम अपनी रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को भेज रहे हैं. अगर शिकायत सही हुई तो इस पर विचार किया जाएगा.”
बीजेपी की एक पुरानी नेता तंद्रा भट्टाचार्य कहती हैं, “उम्मीदवारों के चयन के पीछे की दलील गले से नीचे नहीं उतर रही है.” दक्षिण 24-परगना जिले में भी उम्मीदवारों के चयन पर असंतोष पनप रहा है. लेकिन प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता शमीक भट्टाचार्य कहते हैं, “पूरे राज्य में कोई विरोध नहीं है. कुछ जगहों पर लोगों ने असंतोष जाहिर किया है. पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी की नीतियों से आकर्षित होकर बहुत से लोगों ने पार्टी का दामन थामा है और यह पश्चिम बंगाल में असली बदलाव का संकेत है.”
सभी पार्टियों के दलबदलू बीजेपी में
बीजेपी ने अब तक कम से कम एक दर्जन दलबदलुओं को टिकट दिए हैं. इनमें टीएमसी के अलावा सीपीएम और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेता शामिल हैं. वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने तीन सीटें जीती थीं. उनमें से एक खड़गपुर सदर सीट थी जहां प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष जीते थे. लेकिन उनके वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव में जीत के बाद खाली खड़गपुर सीट उपचुनाव में टीएमसी ने जीत ली थी. इसके अलावा बीजेपी को मालदा में दो सीटें मिली थीं. फिलहाल 2019 के बाद उसके दो विधायक ही थे. खड़गपुर सदर सीट पर इस बार बांग्ला अभिनेता हिरणमय चटर्जी को उम्मीदवार बनाया गया है. हिरणमय भी इसी साल फरवरी में टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे.केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को उनके समर्थन में वहां एक रोड शो किया था.
दिलचस्प बात यह है कि टीएमसी समेत दूसरे दलों से बीजेपी में शामिल होने वाले ज्यादातर नेताओं के वाई, एक्स या जेड कटेगरी की सुरक्षा मुहैया कराई गई है. ऐसे लोगों में शुभेंदु अधिकारी के अलावा जितेंद्र तिवारी, हिरणमय चटर्जी, सीपीएम विधायक अशोक डिंडा, टीएमसी विधायक वनश्री माइती, कांग्रेस विधायक सुदीप मुखर्जी, गाजोल की टीएमसी विधायक दीपाली विश्वास, जगमोहन डालमिया की पुत्री वैशाली डालमिया, टीएमसी विधायक सैकत पांजा, विश्वजीत कुंडू और शीलभद्र दत्त के अलावा सीपीएम विधायक तापसी मंडल शामिल हैं.
तृणमूल में भी असंतोष
विधानसभा चुनावों का टिकट नहीं मिलने की वजह से टीएमसी के पूर्व विधायकों में भी नाराजगी है. उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद कम से कम सात नेता बीजेपी में शामिल हो गए हैं. इनमें कभी ममता बनर्जी की करीबी रहीं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सोनाली गुहा भी शामिल हैं. अब सोमवार को दो बार विधायक रहीं अभिनेत्री देवश्री राय ने भी टीएमसी से इस्तीफा दे दिया है. इसके अलावा कुछ उम्मीदवार निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतर गए हैं तो कुछ अब भी बीजेपी से टिकट की आस लगाए बैठे हैं.
बीते साल दिसंबर से अब तक टीएमसी के कम से कम डेढ़ दर्जन विधायक और नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इनमें से शुभेंदु अधिकारी पर नारदा स्टिंग मामले में पैसे लेने के आरोप हैं. राजनीतिक पर्यवेक्षक प्रोफेसर सुकुमार पाल कहते हैं, “बीजेपी ने पहले टीएमसी के घर में सेंध लगाई. अब उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. असंतोष की आग उसके घर तक पहुंच गई है. इसका चुनावों पर थोड़ा-बहुत असर पड़ना लाजिमी है.” (dw.com)